Mahavir Jayanti in Hindi

Mahavir Jayanti in Hindi: महावीर जयंती दुनिया भर में जैन समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक शुभ त्योहार है। यह जैन धर्म के अंतिम और महानतम तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती है। महावीर जयंती जैनियों के लिए बहुत महत्व का दिन है, जो इसे बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। इस लेख में, हम महावीर जयंती के इतिहास, महत्व और उत्सवों के बारे में जानेंगे।

Mahavir Jayanti Story in Hindi

भगवान महावीर (Mahāvīra) जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तिर्थकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से ५४० वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशर्ण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुडिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दिपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।

जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसपिर्णी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) , ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त है।

महावीर जयंती का इतिहास (History)

महावीर जयंती का इतिहास छठी शताब्दी ईसा पूर्व का है जब भगवान महावीर का जन्म हुआ था। उनका जन्म हिंदू महीने चैत्र (मार्च/अप्रैल) के तेरहवें दिन वैशाली शहर में हुआ था, जो वर्तमान में बिहार, भारत में है। भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर थे। वह एक महान आध्यात्मिक नेता थे जिन्होंने अहिंसा, सत्य और करुणा के संदेश का प्रचार किया।

महावीर जयंती का महत्व (Significance)

महावीर जयंती जैन समुदाय के लिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि यह उनके सबसे श्रद्धेय संत की जयंती का प्रतीक है। जैनियों का मानना है कि भगवान महावीर का जन्म एक दैवीय हस्तक्षेप था और उनका जन्म जैन धर्म की शिक्षाओं को पुनर्स्थापित करने के लिए हुआ था। महावीर जयंती भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं पर चिंतन करने और उनके अहिंसा, सत्य और करुणा के मार्ग पर चलने के लिए फिर से प्रतिबद्ध होने का दिन है। यह जैन धर्म के सिद्धांतों को याद करने और पवित्रता और धार्मिकता का जीवन जीने की अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का दिन है।

महावीर जयंती के समारोह (Celebrations)

महावीर जयंती दुनिया भर के जैनियों द्वारा बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाई जाती है। उत्सव आमतौर पर सुबह भगवान महावीर की मूर्ति के अनुष्ठान स्नान के साथ शुरू होता है। जैन भी इस दिन प्रार्थना करते हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। जैन मंदिरों में विशेष पूजा और आरती आयोजित की जाती है, और भगवान महावीर की स्तुति में भक्ति गीत गाए जाते हैं। जैन भी जुलूस आयोजित करते हैं और इस अवसर को मनाने के लिए रथ जुलूस निकालते हैं।

महावीर जयंती पर उपवास (Fasting)

उपवास महावीर जयंती समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जैन इस दिन एक दिन का उपवास रखते हैं, जिसे भक्ति के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक माना जाता है। उपवास को मन और शरीर को शुद्ध करने और जीवन के आध्यात्मिक पहलू पर ध्यान केंद्रित करने के तरीके के रूप में देखा जाता है। जैन भी किसी भी प्रकार के भोजन का सेवन करने से परहेज करते हैं जो जमीन के नीचे उगता है, जैसे आलू, प्याज, लहसुन आदि।

भारत में महावीर जयंती (Mahavir Jayanti in India)

महावीर जयंती भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है, खासकर बिहार, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में, जहाँ जैन समुदाय केंद्रित है। बिहार में, वैशाली शहर, जहाँ भगवान महावीर का जन्म हुआ था, उत्सव का केंद्र बन जाता है। गुजरात में, एक भव्य जुलूस निकाला जाता है, और महाराष्ट्र में जैन एक दिन का उपवास रखते हैं और जैन मंदिरों में पूजा करते हैं।

दुनिया भर में महावीर जयंती (Mahavir Jayanti around the world)

महावीर जयंती जैनियों द्वारा दुनिया भर में मनाई जाती है, जिसमें यूएसए, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देश शामिल हैं। जैन इस अवसर को चिह्नित करने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। कुछ देशों में, जैन करुणा और दान के अभ्यास के रूप में जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र भी वितरित करते हैं।

क्या महावीर और महात्मा बुद्ध एक दूसरे के समकालीन थे तो क्या वह कभी मिले?

एक राजा जिसने राजपाट होते हुए भी दिगम्बरत्व धारण किया और समूचे प्राणी जगत का नेतृत्व कर उसे सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखलाया। ढाई हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके सिद्धांत और उनका कुशल नेतृत्व प्रासंगिक है। वह नेता कोई और नहीं बल्कि अहिंसा के प्रमुख प्रणेता भगवान महावीर हैं।

उनके समकालीन भगवान बुद्ध ने कहा था कि ‘तीर्थंकर महावीर एक अनुपम नेता है। वे अनुभवी मार्ग प्रदर्शक रहे हैं और सदैव जनता द्वारा सम्मानित, वंदनीय रहेंगे। उनके हर उपदेश, सिद्धांत में कुशल नेतृत्व की छवि दिखाई देती है। चाहे वह प्राणी पे्रम हो या फिर नारी स्वतंत्रता अधिकार की बात।’

जैन एवं बौद्ध दोनों धर्म-दर्शन श्रमण संस्कृति के परिचायक हैं। इन दोनों में श्रम का महत्त्व अंगीकृत है। ‘श्रमण’ शब्द का प्राकृत एवं पालिभाषा में मूलरूप ‘समण’ शब्द है, जिसके संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में तीन रूप बनते हैं – १. समन – यह विकारों के शमन एवं शान्ति का सूचक है। २. समन- यह समताभाव का सूचक है। ३. श्रमण – यह तप, श्रम एवं पुरुषार्थ का सूचक है। श्रमण दर्शनों में ये तीनों विशेषताएँ पायी जाती है।

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पू और भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. हुआ था। मतलब यह कि भगवान महावीर का जन्म बुद्ध के जन्म के पूर्व हुए था और वे दोनों ही एक ही काल में विद्यमान थे। भगवान महावीर ने चैत्र शुक्ल की तेरस को जन्म लिया जबकि गौतम बुद्ध ने वैशाख पूर्णिमा के दिन जन्म लिया था। दोनों ही का जन्म राज परिवार में हुआ था। दोनों ने ही सत्य को जानने के लिए गृह का त्याग कर दिया था। दोनों ही इस दौरान तपस्या करते और प्रकृति की गोद में, जंगल में वृक्ष की छाया में ही अपना जीवन बिताते थे।दोनों ही धर्म में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र, तप और ध्यान, अनिश्‍वरवाद आदि विद्यमान हैं। दोनों की ही विचारधारा अहिंसा पर आधारित थी और दोनों ने ही अहिंसा पर ज्यादा बल दिया।

उल्लेखनीय है कि दोनों के ही जीवन में सिद्धार्थ, साल वृक्ष, क्षत्रिय, तप, अहिंसा और बिहार की समानता रही। दोनों की ही कर्मभूमि बिहार ही रही है।

दुनियाभार में भगवान महावीर और गौतम बुद्ध की ही मूर्तियां अधिक पाई जाती हैं। बुद्ध और महावीर के काल में उनकी बहुत तरह की मूर्तियां बनाकर स्तूप या मंदिर में स्थापित की जाती थी। दोनों की ही मूर्तियां को तप या ध्यान करते हुए दर्शाया गया हैं। महावीर स्वामी की अधिकतर मूर्तियां निर्वस्त्र है जबकि गौतम बुद्ध की मूर्तियां वस्त्र पहने हुए होती हैं।

भगवान महावीर स्वामी :-

  • भगवान महावीर स्वामी का जन्म स्थान क्षत्रिय कुण्ड ग्राम (कुंडलपुर-वैशाली) बिहार है।
  • भगवान महावीर स्वामी का जन्म नाम वर्द्धमान था जबकि उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था , महावीर स्वामी ज्ञातृ क्षत्रिय वंशीय नाथ थे।
  • महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में राजपाठ छोड़कर कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया।
  • महावीर स्वामी ने वैशाख शुक्ल 10 को बिहार में जृम्भिका गांव के पास ऋजुकूला नदी-तट पर स्थित साल वृक्ष ने नीचे कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था। महावीर स्वामी को लगभग 72 वर्ष से अधिक आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या-30 को 527 ई.पू. पावापुरी उद्यान (बिहार) में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था।
  • महावीर स्वामी का दर्शन पंच महाव्रत, अनेकांतवाद, स्यादवाद और त्रिरत्न है। महावीर स्वामी ने अपने उपदेश खासकर प्राकृत भाषा में दिए हैं जबकि वे अर्धमगधी और पाली का उपयोग भी करते थे।
  • महावीर के प्रमुख तीन शिष्य जिन्हें गणधर भी कहते हैं- गौतम, सुधर्म और जम्बू ने महावीर के निर्वाण के पश्चात जैन संघ का नायकत्व संभाला। उन्होंने महावीर स्वामी के विचारों को लोगों के सामने रखा। महावीर स्वामी वर्तमान जैन तीर्थंकरों की कड़ी के अंतिम तीर्थंकर थे।

भगवान बुद्ध :-

  • गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी वन में रुक्मिनदेई नामक स्थान पर हुआ था। गौतम बुद्ध का जन्म नाम सिद्धार्थ था जबकि उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम महामाया देवी था। गौतम बुद्ध शाक्य क्षत्रिय वंशी थे।
  • गौतम बुद्ध ने वैशाख पूर्णिमा के दिन वटवृक्ष के नीचे संबोधि (निर्वाण) प्राप्त की थी। आज उसे बोधीवृक्ष कहते हैं जो कि बिहार के गया में स्थित है। वैशाख पूर्णिमा के दिन स्वयं की पूर्व घोषणा के अनुसार गौतम बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जुड़वां शाल वृक्षों की छाया तले 80 वर्ष की उम्र में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
  • बुद्ध दर्शन के मुख्‍य तत्व ये हैं- चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएं, अनात्मवाद और निर्वाण।
  • बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। गौतम बुद्ध के शिष्यों ने ही बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाया। इनमें से प्रमुख थे- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) आदि। हिन्दू गौतम बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मानते हैं। जबकि पालि ग्रंथों में 27 बुद्धावतारों जिक्र मिलता है जिसमें गौतम बुद्ध 24वें अवतार माने जाते हैं। कुछ लोग उन्हें शिव का अवतार मानते हैं।

दोनों धर्मों में असमानताएँ:-

1) जैन धर्म के ग्रन्थ प्राकृत में है जबकि बौद्ध धर्म के पाली में।
2) जैन धर्म के त्रिरत्न सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र है। जबकि बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध, धर्म और संघ है।
3) जैन धर्म में जाति प्रथा का विरोध किया है पर वर्ण व्यवस्था का नहीं, जबकि बौद्ध धर्म में जाति प्रथा व वर्ण व्यवस्था दोनो का विरोध किया है।
4) जैन धर्म में देवताओं को जिन के नीचे रखा है तथा पुनर्जन्म में विश्वास, जबकि बौद्ध धर्म अनिश्वरवादी, अनात्मवादी, तथा पुनर्जन्म में विश्वास।
5) जैन धर्म अनन्त चतुष्टय, स्यादवाद को मानता है जबकि बौद्ध धर्म आष्टागिंक मार्ग, क्षण भंगवाद, नैरात्मवाद, प्रतीत्य समुत्पाद सिद्धांत को मानता है।
6) जैन श्रमण-श्रमणियों की आचारसंहिता अत्यन्त कठोर है जो उन्हें वाहनों द्वारा विदेशी यात्रा के लिए अनुमति प्रदान नहीं करती। जैनधर्म अपनी उदार एवं अनेकान्तवादी दृष्टि के कारण भारतीय वैदिक परम्पराओं के साथ समन्वय बिठाने में सक्षम रहा, अतः उसके समक्ष ऐसी कोई विवशता नहीं रही कि उसे यहाँ से पलायन करना पड़े।

बौद्ध भिक्षुओं को भारत से पलायन करना पड़ा था। बौद्धधर्म का भारत में पुनः प्रसार हुआ बीसवीं सदी में। जब डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्वयं बौद्ध बने तथा भारतीय दलितवर्ग को विशाल स्तर पर बौद्धधर्म से जोड़ा। इक्कीसवीं सदी में अनेक विश्वविद्यालयों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योजना के अन्तर्गत बौद्ध अध्ययन केन्द्रों की स्थापना हो रही है।

Mahavir Jayanti Quotes in Hindi

“हमारे जीवन का उद्देश्य खुश रहना है।”

भगवान महावीर

“अहिंसा सर्वोच्च कर्तव्य है। भले ही हम इसका पूर्ण रूप से अभ्यास न कर सकें, हमें इसकी भावना को समझने की कोशिश करनी चाहिए और जहां तक संभव हो हिंसा से दूर रहना चाहिए।”

भगवान महावीर

“सभी दुखों की जड़ आसक्ति है।”

भगवान महावीर

“सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं।”

भगवान महावीर

“जियो और दूसरों को जीने दो, किसी को दुख मत दो, जीवन सभी प्राणियों को प्रिय है।”

भगवान महावीर

महावीर के बचपन का नाम क्या था?

महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था।

भगवान महावीर कौन थे?

भगवान महावीर भगवान से कम नहीं हैं और उनका दर्शन बाइबिल की तरह है। वर्धमान महावीर के रूप में जन्मे, उन्हें बाद में भगवान महावीर के नाम से जाना जाने लगा।भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है

भगवान महावीर ने कितनी तपस्या की?

भगवान् महावीर दीर्घ तपस्वी कहलाते थे। उन्होंने बड़ी-बड़ी तपस्याएँ की। उनका साधना-काल साढ़े बारह वर्ष और एक पक्ष (पंद्रह दिन) का था। इस अवधि में उनके द्वारा की गयी उपवास की तालिका इस प्रकार है:
दो दिन का उपवास : बारह बार।
तीन दिन का उपवास : दो सौ उन्नीस बार।
पाक्षिक उपवास : बहत्तर बार।
एक मास का उपवास : बारह बार।
डेढ़ मास का उपवास : दो बार।
दो मास का उपवास : छः बार।
ढाई मास का उपवास : दो बार।
तीन मास का उपवास : दो बार।
चार मास का उपवास : नौ बार।
पांच मास का उपवास : एक बार।
पांच मास पचीस दिन का उपवास : एक बार।
छः मास का उपवास : एक बार।
भद्र प्रतिमा – दो उपवास : एक बार।
महाभद्रप्रतिमा – चार उपवास : एक बार।
सर्वतोभद्रप्रतिमा – दस उपवास : एक बार।
भगवान् ने साधनाकाल में सिर्फ तीन सौ पचास दिन भोजन किया। नित्य भोजन कभी नहीं किया। उपवासकाल में कभी जल भी नहीं पिया। उनकी कोई भी तपस्या दो उपवास से कम नहीं थी।

महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ था?

भगवन महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था।

महावीर की पुत्री का नाम किया था?

श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ।

भगवान महावीर के बारे में विश्व को क्या जानना चाहिए?

वैराग्य को उपास्तिथ रखकर प्रभु, आपने राग को कमज़ोर कर दिया।
हर्ष शोक से मुक्त रह कर प्रभु, आप आनंद भाव के स्वामी बने रहे।
सरल रहकर प्रभु, आप कुटिल कर्मों को ख़त्म करने में सफल होते रहे ।
अदिन बने रहकर प्रभु, आपने कर्मों को दीन बना दिया ।
रसविजेता बनकर प्रभु, आप सही मायने में सरस बनते रहे ।
सहन करते रहकर प्रभु, आप शुद्ध बनते ही गये ।
सावधान रहकर प्रभु, साधन को आप जीवंत बनते रहे।
मौन रहकर प्रभु, आप मंगलरूप बन गये ।
मन को निर्मल रखकर प्रभु, आप आत्मा को कर्म मल से मुक्त करते रहे।
दुःखों के समक्ष शांत रहकर प्रभु, आपने तो दोषों को शांत कर दिया।
धीर वीर गंभीर रहकर , आख़िर आप महावीर बन गये।

महावीर स्वामी का प्रथम शिष्य कौन था?

उनका दामाद अनोज्जा प्रियदर्शिनी का पति जमाली था जो महावीर स्वामी का पहला शिष्य बना।

महावीर ने अपने उपदेश किस भाषा में दिए?

महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिए थे।

भगवान महावीर ने पंचशील सिद्धांत कौन-कौन से बताये हैं?

१-अहिंसा: किसी भी जीव को चोट न पहुँचाना
२-सत्य: झूठ न बोलना
३-अस्तेय: चोरी न करना
४-अपरिग्रह: संपत्ति का संचय न करना
५-ब्रह्मचर्य

महावीर की मृत्यु कहाँ हुई थी?

पावापुरी

महावीर स्वामी को ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ था?

दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 वर्ष और 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे ‘साल वृक्ष’ के नीचे भगवान महावीर को ‘कैवल्य ज्ञान’ की प्राप्ति हुई थी।

जैन धर्म में महावीर को क्या माना जाता है?

जैन धर्म में दो संगठन है श्वेताम्बर और दिगम्बर, जो अपने अपने अनुसार महावीर स्वामी को अलग-अलग रूप में देखते हैं। जैसे श्वेताम्बर के अनुयायी जहाँँ पर महावीर स्वामी को भगवान का दर्जा देते हैं वहीं पर दिगम्बर में महावीर स्वामी को सिर्फ एक महान पुरूष मात्र मानते हैं, जिसने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की थी।

निष्कर्ष
महावीर जयंती दुनिया भर के जैनियों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, क्योंकि यह उनके सबसे महान संत भगवान महावीर की जयंती का प्रतीक है। त्योहार बहुत भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है,

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